बरेली। एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के पांचाल संग्रहालय की दुर्लभ सामग्री गैलरी को वर्तमान में नालंदा केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार में कुलपति बरेली निवासी प्रो. डॉ. अजय कुमार सिंह ने अपनी स्वर्गीय बहन की पुण्य स्मृति में दान में दिया था। प्रो. अजय के पूज्य पिताजी प्रतिष्ठित जमींदार-ऑनरेरी मजिस्ट्रेट स्वर्गीय शंकर सिंह ने यह आलीशान-शानदार भवन ब्रिटिश हुकूमत में बनवाया था। प्रो. अजय ने इस भवन के साथ दो अत्यंत दुर्लभ पौराणिक शंख भी पांचाल संग्रहालय को दान किए थे।

संग्रहालय के एसोसिएट रिसर्च हेड डाॅ. हेमंत मनीष शुक्ल बताते हैं कि ईरान में भारतीय संस्कृति निदेशालय के डायरेक्टर भी रह चुके प्रो. अजय का दावा है कि आदि शंकराचार्य ने चार ऐसे दक्षिणावर्ती शंख बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धामों में प्राण प्रतिष्ठित कराए थे। ऐसे ही ये दो शंख तत्कालीन जगद्गुरु शंकराचार्य ने प्रो. अजय के धर्मनिष्ठ पुरखों को सौंपे थे।
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प्रो. अजय बताते थे कि ऐसा ही एक दक्षिणावर्ती शंख भगवान विष्णु के हाथ में भी लक्ष्मीजी के प्रतीक के रूप में सुशोभित है। शंख पर जो उतार-चढ़ाव वाली वलयाकार रेखाएं और छिद्र हैं, उन्हें बनने में कम से कम एक हजार वर्ष का समय लगता है। प्रो. अजय के दावे पर यकीन करें तो यह अत्यंत दुर्लभ पौराणिक शंख लगभग एक लाख वर्ष पुराने हैं।
प्रो. अजय के हवाले से डाॅ. हेमंत ने बताया कि आमतौर पर घरों में दीवारों पर जो दक्षिणावर्ती शंख टांगे जाते हैं उनमें पंखों के आकार वाला हिस्सा होता ही नहीं है। शंखों को काटकर उन्हें बजाने के लिए छेद भी बनाया जाता है। संग्रहालय में ये दोनों शंख अपने मूल पौराणिक आकार में संरक्षित हैं। समुद्र की अतल गहराइयों में पड़े इन दक्षिणावर्ती शंखों में बंद घोंघा उंगलियों से पकड़ी जाने वाली नीचे की जगह में छेद बनाकर बाहर निकल गया होगा। ये पौराणिक शंख संग्रहालय की पुरातात्विक महत्व की दुर्लभतम सामग्रियों में से एक हैं। बहुत से लोग यहां इनके दर्शन-पूजन करने और शोध छात्र शोध करने निरंतर आते ही रहते हैं