बरेली। सरकार पावर कारपोरेशन को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। इसके जिम्मेदार निगम में बैठे वे भ्रष्टाचारी हैं जो चंद पैसों के लालच में अपने ईमान और जमीर का सौदा कर लेते हैं। कारपोरेशन के कई अफसर भ्रष्टाचार की गंगा में बराबर डुबकी लगा रहे हैं और साक्ष्यों के बाद भी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। अधिशासी अभियंता सेकेंड सतेंद्र चौहान के डिबीजन में गड़बड़झालों की भरमार है। चाहें बिजली चोरी के आरोपियों से गठजोड़ करने का मामला हो या फिर उद्योग की क्षमता बढ़ाए जाने में खेल करने का। सभी मामलों में शिकायतें भी हुई हैं और दिशाहीन जांच भी, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिस वजह से आरोपियों के हौसले बुलंद हैं।
पिछले दिनों 12 फरवरी को अधिशासी अभियंता सेकेंड सतेंद्र चौहान के डिबीजन में मथुरापुर परसाखेड़ा में टीम ने चार लोगों के यहां बिजली चोरी पकड़ी थी। पहले आरोपियों को लाखों रूपये के फर्जी नोटिस भेजे गये, जिन पर अधिशासी अभियंता के हस्ताक्षर नहीं थे। इसके बाद विभागीय लोगों ने दलाल के माध्यम से सौदेबाजी शुरू कर फिर 23 फरवरी को कुछ कम रकम के नोटिस तैयार किये। लेकिन उन्हें पोस्ट आफिस में डिस्पैच नहीं किया गया। सौदा तय होने के बाद 11 मार्च को नोटिस पोस्ट आफिस भेजे गये।
जबकि पावर कॉरपोरेशन मुख्यालय का आदेश है कि विभाग बिजली चोरी के मामले में तीन दिन के अन्दर आरोपी को प्रोविजनल बिल देगा। इसके पंद्रह दिन के अंदर उपभोक्ता अगर प्रोविजनल बिल से असहमत है तो अपना प्रत्यावेदन दे सकता है। 30 दिन के बाद प्रोविजनल बिल को ही फाइनल बिल माना जायेगा। इस तरह 12 फरवरी को हुई बिजली चोरी के मामले में जिस नोटिस को तीन कार्य दिवस के अन्दर भेजना था वह 30 दिन बाद भेजा गया। यही नहीं इन आंकड़ों को आरएमएस पोर्टल पर भी अपलोड नहीं किया गया, जिससे कि मामला पकड़ में आये। प्रकरण मीडिया में आने के बाद जिम्मेदारों ने कार्रवाई की जगह मामला मैनेज कराने में तरजीह दी। सीबीगंज क्षेत्र के रहने वाले दलालों ने मिलकर बिजली चोरी के आरोपी उपभोक्ताओं से पैसों के संबंध में चिट्ठी लिखवा दी है कि जितने रूपये उनसे लिए गये हैं उतने की रसीद दी गई है। सवाल उठता हैै कि बिजली चोरी के आरोपियों के लिख देने से क्या अधिशासी अभियंता आरोपमुक्त हो जायेंगे। इस मामले में कई ऐसे पेंच हैं जिनकी सही से जांच होने पर कईयों का फंसना तय है।
यह मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा कि ओरिएण्टल एरोमेटिक्स लिमिटेड जिसे कैंफर फैक्ट्री के नाम से जाना जाता है। कंपनी के अधिशासी निदेशक सतीश कुमार ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने उत्पादन बढ़ाने के लिए पावर कारपोरेशन के नगरीय सेकेंड डिवीजन से विद्युत लोड बढाने की मांग की थी। इसके बाद विद्युत निगम के इंजीनियरों ने लाइन सुदृढ़ीकरण के लिए 2763532 रूपये का स्टीमेट बनाकर दिया। जिसे कंपनी ने विद्युत निगम के खाते में जमा कर दिया। इसके बाद भी लाइन सुदृढ़ीकरण का काम नहीं कराया गया और न ही लोड बढ़ाया गया। इसी दौरान कंपनी ने दो बार में लोड बढ़ाने का निर्णय लिया और अधिशासी अभियंता सेकेंड सतेंद्र चौहान से मिलकर पहले चरण में लोड 1000 केवीए से 1600 केवीए करने को कहा। आरोप है कि निगम के जिम्मेदार अफसरों ने गैर जिम्मेदाराना तरीके से लोड 1600 केवीए की जगह 1800 केवीए बढ़ा दिया, लेकिन कंपनी द्वारा जमा किये गये पैसे से लाइन सुदृढ़ीकरण का काम नहीं कराया गया और न क्यूबिकल मीटर लगाया गया। ये हाल तब है जब सरकार उद्योग धन्धों को बढ़ाने का प्रयास कर रही है और उन्हें तमाम सहुलियतें देने में लगी है।
अनसुलझे सवाल
- 1. जब सभी नोटिसों पर कस्टमर आईडी पड़ी है, यानी उनके नाम कनेक्शन है तो उन्हें फैक्टर प्वाइंट थ्री का लाभ कैसे दे दिया।
- 2. 12 फरवरी को बिजली चोरी का मामला दर्ज किया गया जिसका प्रोविजनल बिल 3 कार्य दिवस में भेजा जाना था उसे एक माह बाद पोस्ट आफिस से क्यों भेजा गया।
- 3. प्रोविजनल विल 23 फरवरी को विभाग से डिस्पैच दिखाया जा रहा है, जबकि पोस्ट आफिस से उसकी रजिस्ट्री 11 मार्च को की गई है।
- 4. बिजली चोरी के आंकड़े आरएमएस पोर्टल पर अपलोड क्यों नहीं किए गये हैं।
- 5. प्रोविजनल विल से कई गुना कम रकम पावर कारपोरेशन के खाते में क्यों जमा कराई गई।
- 6. बिना हस्ताक्षर वाले प्रोविजनल बिल और हस्ताक्षर वाले प्रोविजनल बिलों पर चेकिंग रिपोर्ट नंबर एक है और बिल की रकम अलग अलग। जबकि दोनों प्रोविजनल बिलों का फॉन्ट साइज एक है और कई समानताएं हैं।
इन सवालों का किसी के पास कोई जवाब नहीं है। जांच टीम पूरे मामले पर पर्दा डालने में जुटी हुई है। अधीक्षण अभियंता से जब इस बारे में जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि जांच रिपोर्ट गोपनीय है।
यह था मामला
महबूब हुसैन पुत्र ताजमन हुसैन निवासी मथुरापुर परसाखेड़ा के नाम अधिशासी अभियंता के बगैर हस्ताक्षर एक प्रोविजनल बिल का नोटिस जारी किया गया। जिसमें 183776 रुपए जुर्माना लगा है, इसका विभाग में कोई रिकार्ड नहीं है। जबकि लिखापढ़ी में 23 फरवरी को अधिशासी अभियंता सेकेंड सतेंद्र चैहान के हस्ताक्षर से जो नोटिस जारी हुआ है उसमें 76390 रुपए दर्शाए गए हैं, वही उसके सापेक्ष निगम के खाते में दिनांक 20 मार्च को 55798 रूपये जमा कराए गये हैं। यहीं के सद्दीक अहमद पुत्र नूर अहमद को बिना अधिशासी अभियन्ता के हस्ताक्षर भेजे गए प्रोविजनल बिल में 167679 रुपए दर्शाए हैं, जबकि 23 फरवरी को भेजे गए हस्ताक्षर वाले प्रोविजनल बिल में 72915 रुपए दर्शाये गए हैं। जबकि दिनांक 4 अप्रेल को यानि करीब दो माह बाद निगम के खाते में कुल 42486 रूपये जमा किये गए हैं। बाबू पुत्र गुलाम हुसैन को बिना हस्ताक्षर भेजे गए प्रोविजनल बिल में 168958 रुपए दर्शाए है, और 23 फरवरी को भेजे गए हस्ताक्षर वाले प्रोविजनल बिल में 73270 रुपए दर्शाए हैं। जबकि निगम के खाते में दिनांक 20 मार्च कुल 38330 रूपये जमा कराए हैं। वसीम अहमद पुत्र नसीर अहमद निवासी मथुरापुर को बिना हस्ताक्षर से भेजे गए प्रोविजनल बिल में 230772 रुपए दर्शाए गए हैं, जबकि उसके सापेक्ष दिनांक 4 अप्रेल को कुल 59666 रूपये जमा कराए हैं।
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