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पावर कारपोरेशन : कंप्यूटर ऑपरेटर के हाथ में साहब की जान… कार्यालय ही नहीं, गाड़ी के स्टीयरिंग की भी कमान

बरेली। नगर निगम के एक कंप्यूटर ऑपरेटर ने टेंडर जारी करने में घपलेबाजी करके लाखों रुपये भीतर कर लिए। आरोप लगे तो उसे हटा दिया गया क्योंकि इस मामले में एक अधिकारी के गले का नाप भी लिया जाने लगा था, लेकिन पावर कारपोरेशन में कंप्यूटर ऑपरेटर की ताकत के आगे अधिकारी भी नतमस्तक हैं। निगम में ज्यादातर हेराफेरी के काम इसी के जरिये किए जाते हैं। यहां तक कि साहब जिस गाड़ी से चलते हैं उसके स्टीयरिंग की कमान भी इसी के हाथ में हैं।

डिजिटल होती व्यवस्था में पावर का हस्ताक्षरण हो रहा है। पहले जो काम बाबू किया करते थे अब ज्यादातर कंप्यूटर ऑपरेटर कर रहे हैं। वह भी नाममात्र के वेतन पर। ऐसे में करोड़ों की धनराशि पर मन डोलना लाजमी है। कुछ निगम की सेवा कर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो जल्द से जल्द रिटायरमेंट प्लान बना रहे हैं। इन्हीं में एक गुरुजी के रथ पर सवार बड़े साहब का कंप्यूटर ऑपरेटर है। साहब की शार्गिदी में वह विद्युत निगम में ठेकेदारी कर रहा है। उसकी गाड़ियों से बड़े और छोटे साहब भी चलते हैं।

कंप्यूटर ऑपरेटर ने निगम को जकड़ रखा है, कब किस साहब की गाड़ी कहां बंद करनी है और चलानी है यह उसके हाथ में है। साहब भी इसी के साथ मिलकर सारी हेराफेरी करते हैं। विद्युत निगम में जमा होने वाले राजस्व की रसीदें भी साहब इसी कंप्यूटर ऑपरेटर के साथ मिलकर रद्द कराने का खेल खेलते हैं।

छोटे सरकार के यहां से आए, राजधानी को बनाया ठिकाना

बड़े साहब और उनकी पत्नी को लखनऊ और दिल्ली ले जाने के लिए छोटे सरकार के जिले से ड्राइवर आता है। मंजिल पर पहुंचने से कुछ किलोमीटर पहले साहब इस ड्राइवर को भी छोड़ देते हैं। वहां से उन्हें पिकअप करने के लिए अलग व्यवस्था रहती है। यह इसलिए भी कि साहब और मेम साहब कहां जा रहे हैं किसी को पता न चले। हालांकि चलते दोनों अलग-अलग ही हैं। छोटे सरकार के जिले से साहब का खासा प्रेम रहा है। उनके हस्ताक्षर से वहां भी खूब खेल हुए। जब बड़े साहब एक मामले में फंस गए तो दूसरे की बलि देकर छूट निकले लेकिन वहां से नाता नहीं टूटा। नाता इतना गहरा है कि अब भी साहब या मेम साहब कहीं भी माल ठिकाने लगाने जाते हैं तो वहीं से राजदार बुलाते हैं।

गुरुजी के दरबार में दिन में दो बार देते हैं हाजिरी

बड़े साहब नई व्यवस्था में बड़ी कुर्सी चाहते थे लेकिन अखबारों ने उनके किस्से उजागर करके खेल बिगाड़ दिए। मामला लखनऊ तक पहुंचा गया और निगम के मुखिया के सामने सारे खेल धरे रह गए। फिर भी तिगड़बाजी करके साहब नई व्यवस्था में दूसरे नंबर की पोस्टिंग पा गए। निगम से जुड़े लोगों का कहना है कि बड़े साहब की कुर्सी केवल दो समय के आशीर्वाद से चल रही है।

घोटाला करने वाले बचे, शिकायत करने वाले नपे

ग्रामीण क्षेत्र के एक कंप्यूटर के रिसाइकिल बिन में एडिट की हुई कुछ रसीदें मिली थीं। इसकी जानकारी पुराने कर्मचारी की जगह आए नए कर्मचारी को हो गई। उसने जाकर साहब को बताया। निगम में चल रहे घोटाले की पोल खोली तो उसके कंप्यूटर का सीपीयू ही चोरी हो गया। इसके बाद शिकायत करने वाले को ही नाप दिया गया। दरअसल डर यह था कि अगर  नए कर्मचारी की वजह से जांच बैठ जाती तो भेद खुल जाता, फिर गर्दन कितनों की फंसती, इसलिए एक की बलि ले ली गई। वैसे तो शहरी क्षेत्र के दो खंडों में रसीदें निरस्त किए जाने के कई मामले सामने आ चुके हैं। अधिकारी उन्हें अपने अंदाज में जायज करार देकर निपटा रहे हैं।

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