बरेली। पीडब्ल्यूडी में जब तक बजट खपाने के धुरंधर खिलाड़ी माने जाने वाले अफसरों का दबदबा रहेगा तब तक योगी सरकार का सड़कें गड्ढामुक्त होने का सपना साकार होने से रहा। मुख्यमंत्री भले कितना भी जोर लगा लें लेकिन अफसरशाही उनके हर सपने पर पानी फेरने में लगी है। अब बात बरेली के बहेड़ी की जाए तो वहां बजट खपाने के लिए ऐसी जगह सड़क बना दी गई। जहां का टेंडर भी नहीं निकाला गया था। और जहां का टेंडर निकाला गया वहां सड़क चमाचम थी। सो ठेकेदार ने खानापूरी करते हुए ऐसी जगह सड़क बना दी जो ऊबड़-खाबड़ थी ताकि भविष्य में इसका पैसा हजम किया जा सके।

इस सड़क का निकाला टेंडर

इस सड़क को डाल दिया
31 मार्च वित्तीय वर्ष का अंतिम दिन होता है। यह समय हर विभाग के लिए बचा-खुचा बजट खपाने का होता है। शासन से भी दबाव होता है कि किस विभाग ने कितना बजट बचाया और खर्च किया। ऐसे में विभागीय अधिकारी भी ऐसे लोगों को ढूंढते हैं जो बजट खपाने में माहिर हो। नेताओं को जनता खुश रखनी है और अधिकारियों को नेता। यहीं से शुरू होता है खेल।
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इस खेल को ऐसे समझें पीडब्ल्यूडी ने 4 फरवरी को गांव टेहरा से मसमासी तक सड़क रिन्यूवल का टेंडर निकाला था। टेंडर की आखिरी तिथि 11 फरवरी थी। यह टेंडर 9 लाख 78 हजार रुपये का था। इस टेंडर का अनुबंध 28 मार्च को हुआ। 950 मीटर लंबी इस सड़क का एस्टीमेंट बना 11 लाख 54 हजार रुपये का।
बजट खपाने के लिए साल के आखिरी महीनों में निकालते हैं टेंडर
बजट खपाने के लिए साल के अंत में बड़ी मात्रा में टेंडर निकाले जाते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है कि सरकार भी नहीं चाहती जो पैसा विकास कार्यों के जारी कर दिया गया है वह लौटकर खजाने में आए। ऐसे में अंतिम समय में ताबड़तोड़ टेंडर निकाले जाते हैं। इस कड़ी में उन सड़कों के भी टेंडर निकाल दिए जाते हैं, जो ठीक ठाक हालत में होती हैं। फिर काम के नाम पर केवल खानापूरी होती है और बजट हजम कर लिया जाता है।
नटवरलालों के चंगुल में फंसकर गुमराह हो रहे अफसर
यह खेल किसी अकेले के बस का तो हैं नहीं। कुछ नटवरलाल इंजीनियर भी चहिए होते हैं, जो इस खेल के माहिर खिलाड़ी होते हैं। बहेड़ी में जो सड़क टेहरा से मसमासी तक बननी थी, उसे रुस्तमनगर उर्फ ऊंचा गाँव से मसमासी तक बनवा दिया गया, उसमें भी नटवरलाल की बड़ी भूमिका रही। उसी ने अधिशासी अभियंता भगत सिंह को गुमराह किया। यही वजह रही कि जब अधिशासी अभियंता भगत सिंह से इस बारे में पूछा गया तो वह भी उसकी ही जुबान बोलने लगे। कहा कि काम उसी जगह हो रहा है, जहां के लिए स्वीकृत हुआ था। इस नटवरलाल इंजीनियर के गुरु भी बजट खपाने में माहिर रहे हैं। उनकी शार्गिदी में रहकर ही इसने यह सब खेल सीखे हैं।
चमचमाती सड़कों के भी निकाल दिए टेंडर
साल भर तो अधिकारी केवल उन्हीं कामों पर ज्यादा ध्यान देते हैं जो शासन की प्राथमिकता पर होते हैं। बजट खपाने का असल खेल भी उन्हीं में चलता है लेकिन जैसे ही वित्तीय वर्ष समाप्ति की ओर आता है। शासन से बजट खर्च करने का दबाव बनता है तो इनका असल खेल शुरू होता है। तब आनन-फानन बजट बनाए जाते हैं। बजट हजम करने के लिए इनमें उन सड़कों तक को भी शामिल कर लिया जाता है, जो पूरी तरह ठीक होती हैं। उन पर भी कागजों में काम दिखाकर पैसा हजम कर लिया जाता है।