बरेली/मीरगंज। मीरगंज के अलावा रामपुर, मुरादाबाद और उत्तराखंड तक के कई दर्जन कारोबारियों ने बरेली-दिल्ली नेशनल हाईवे किनारे फतेहगंज पश्चिमी के पास ढाई दशक से बंद पड़ी रबड़ फैक्ट्री के खाली पड़े सैकड़ों एकड़ फील्ड को लाल मिर्च का डंपिंग ग्राउंड बना डाला है। मीलों दूर जहां तक आपकी नजर आएगी, आपको मिर्चों के लाल पहाड़ और सूखती मिर्चों से पटे लाल-पीले खेत ही दिखेंगे। मैदान में सूखती मिर्च को बेशुमार धूल-धक्कड़ और उड़ते पक्षियों की बीट भी खराब कर देती है। देश भर की मंडियों में भेजी गई इन्हीं मिर्चों को पिसवाकर पैकिंग-ब्रांडिग कर बेचा जाता है।
500 औरतों, 200 मजदूरों का रोजी-रोटी का जुगाड़
प्रयागराज, वाराणसी, रायबरेली और जहानाबाद (कानपुर) से 25-30 रुपये किलो की दर से मंगवाई गई नम मिर्च को मीलों तक फैले इस मैदान में डालकर 2-3 दिन तक सुखाने के बाद बाहरी मंडियों में भेजकर 130-140 रुपये किलो की दर से बेचते हैं। राधाकृष्ण मंदिर के पीछे खाट पर बैठकर मिर्चों की ढेरियों की रखवाली कर रहे लाल सिंह यादव ने बताया कि गरीब परिवारों की 500 से ज्यादा बूढ़ी-बुजुर्ग औरतें, लड़कियां और बहुएं 200 से 300 रुपये दिहाड़ी पर मिर्च फैलाकर सुखाने और उनके डंठल तोड़कर छोटी-छोटी ढेरियां बनाने के काम में सुबह से शाम तक जुटी रहती हैं। 200 से ज्यादा मजदूर भी 30 रुपये बोरी पर मिर्चों को फैलाने, सुखाने और बोरियों को ट्रकों में लादने-उतारने के काम में लगे हैं।
टैक्सपेड है हमारा पूरा मिर्च कारोबार
संजय गुप्ता, संतोष गुप्ता, अनिल गुप्ता आदि मीरगंज के मिर्च कारोबारी बताते हैं कि मिर्च का हमारा पूरा नंबर एक में टैक्स का बाकायदा भुगतान करके चलता है। 5 प्रतिशत सीजीएसटी और 1.5% मंडी शुल्क का भुगतान करने के बाद ही मिर्च लदे ट्रक बाहरी मंडियों में भेजे जाते हैं।
दस साल से काट रहे अघोषित देशनिकाले की सजा
मीरगंज के बड़े मिर्च कारोबारी संजय गुप्ता बताते हैं कि दस साल पहले जब हाईवे नहीं बना था तो नगरिया सादात के सामने पुराने दिल्ली रोड किनारे मिर्चें सुखाने और दिहाड़ी मजदूरों से डंठल तुड़वाकर बाहर भिजवाते थे। इस धंधे से सैकड़ों मध्यवर्गीय परिवारों की रोजी-रोटी चल रही थी, लेकिन हाईवे बनने के बाद मिर्च सुखाने के लिए जगह ही नहीं बची। लिहाजा अघोषित देशनिकाले की सजा भुगतने को मजबूरन मीरगंज के हम 20 से ज्यादा लाइसेंसी मिर्च कारोबारियों को 15 किमी दूर स्थित वर्षों से खाली पड़े रबड़ फैक्ट्री ग्राउंड का रुख करना पड़ा। हमारी देखादेखी दुनका, विलासपुर, रामपुर, जलालाबाद (शाहजहांपुर), रुद्रपुर (उत्तराखंड) तक के कारोबारी रबड़ फैक्ट्री ग्राउंड में ही लाकर मिर्चें सुखाते और बोरियों में भरवाकर ट्रकों से बरेली, आगरा, दिल्ली, कानपुर, बीकानेर, जयपुर, अहमदाबाद, पटना, रांची, कोलकाता समेत देश भर की मंडियों में भिजवाते हैं।
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दमा, टीबी की चपेट में सैकड़ों दिहाड़ी मजदूरिनें, नहीं लगा फ्री हेल्थ कैंप
500 से ज्यादा दिहाड़ी मजदूरिन औरतें सुबह आठ से शाम पांच बजे तक मिर्चों के डंठल तोड़ने के काम में जुटी रहती हैं। मिर्चों की धांस से बचने के लिए मुंह पर दुपट्टे या साड़ी का ढाठा भी बांधना पड़ता है। फिर भी कई बुजुर्ग औरतें दमा और टीबी जैसी घातक बीमारियों की शिकार हो ही जाती हैं। प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग की टीम ने कभी रबड़ फैक्ट्री ग्राउंड में आकर इन दिहाड़ी मजदूर औरतों के स्वास्थ्य की जांच के लिए एक बार भी फ्री मेडिकल कैंप लगवाने की जरूरत महसूस नहीं की है।

फ्री हेल्थ कैंप लगवाने की तैयारी में स्वास्थ्य विभाग
रबड़ फैक्ट्री ग्राउंड पर अनधिकृत कब्जा करके मिर्चों को सुखाने का काम किया जा रहा है, ऐसा अब तक मेरी जानकारी में नहीं लाया गया है। महिला मजदूर भी वहां डंठल आदि तोड़ने के काम में बड़ी तादाद में लगी हैं और इनमें से कई टीबी, दमा जैसी गंभीर बीमारियों की शिकार हो सकती हैं-यह तथ्य आपके जरिए ही आज मुझे ज्ञात हुआ है। उच्चाधिकारियों से दिशानिर्देश लेने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम भेजकर मजदूरों के लिए वहां फ्री हेल्थ कैंप अवश्य लगवाया जाएगा। -डाॅ.संचित शर्मा, चिकित्सा अधीक्षक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, खिरका (फतेहगंज पश्चिमी), बरेली