बरेली। बाट माप विभाग से तराजू बाट की मरम्मत का लाइसेंस लेकर खुद को बाट माप विभाग का इंस्पेक्टर बताकर व्यापारियों से वसूली करने वाले घपलेबाज मरम्मतकर्ताओं के कारनामों की फेहरिस्त इतनी लंबी कि उपन्यास लिखा जा सकता है। इस विभाग में कदम-कदम पर घपले घोटाले हो रहे हैं। मरम्मतकर्ता ही नहीं विभागीय कर्मचारी और अफसर भी इसमें सिद्दत से भागीदारी निभा रहे हैं। व्यापारियों की जेब पर डाका डालने वाले 90 फीसदी मरम्मतकर्ता ऐसे हैं जिनकी लैब केवल कागजों में चल रही है और उनका पता भी गोलमोल है, जो ढूंढे न मिले।
बाट माप विभाग में मरम्मतकर्ता लंबे समय से व्यापारियों से अवैध वसूली कर रहे हैं। वे मरम्मत का लाइसेंस लेने के बाद दुकानों पर छापा मारते हैं। खुद को बाट माप विभाग का अधिकारी बताकर व्यापारियों से मनमानी वसूली करते हैं, जबकि उनका काम कांटा बाट की मरम्मत करने का है मगर अफसरों और कर्मचारियों से मेलजोल होने की वजह से सालों से उनकी मनमानी चल रही है।
अफसरों की बेखबरी या देखकर भी मुंह फेरने का आलम यह है कि अकेले किला लैब से इसरार ने नियम विरुद्ध अपने नाम पर दो लाइसेंस बनवा रखे हैं। एक लाइसेंस बहेड़ी लैब में उसके नाम पर है। पत्नी और बेटे के नाम पर अलग से लाइसेंस ले रखा है। ये लाइसेंस वह लंबे समय से चला रहा है लेकिन अब तक पकड़ा नहीं गया क्योंकि विभाग के छोटे से लेकर बड़े साहब तक का कृपापात्र है। बिरयानी वाले साहब की विशेष कृपा तो उस पर है ही।
किला लैब का हाल : आदमी वही पर पता अलग-अलग
किला लैब में इसरार की दो फर्में पंजीकृत है, इनमें एक उत्तर प्रदेश बाट माप स्केल वर्क्स के नाम से है, इसका प्रोपराईटर मो. इसरार पुत्र अखलाक निवासी बजरिया इनायतगंज है, जबकि दूसरी फर्म कुमार स्केल वर्क्स नाम से पंजीकृत है, इसमें इसरार का पता फूटा दरवाजा लिखा है और उसका पार्टनर रामपुर निवासी शरद बाबू पुत्र सुधीर कुमार सक्सेना हैं। इसकी तीसरी फर्म बहेड़ी में पंजीकृत है। जिसका नाम बहेड़ी बाट माप स्केल वर्क्स है, इसमें इसरार ने अपना नाम बदलकर इसरार जुबैरी पुत्र अखलाक निवासी फूटा दरवाजा दर्शाया है और उसका पार्टनर है इमरान शमशी पुत्र इनामउल हक शमशी और कार्यशाला का पता माथुर रोड बहेड़ी है। एक फर्म उसकी पत्नी और एक बेटे के नाम पर चल रही है।
इसरार-कामरान के अलावा सरकारी कर्मचारी भी पीछे नहीं
बाट माप विभाग में इसरार और कामरान के अलावा भी कई बड़े खिलाड़ी है, जो अधिकारियों को सेवा शुल्क देकर एक से ज्यादा फर्में चला रहे हैं और खुलेआम वसूली का कर रहे हैं। कामरान की किला लैब से यूपी स्केल्स नाम से एक फर्म पंजीकृत है, जबकि दूसरी फर्म उत्तर प्रदेश स्केल्स नाम से मुख्य लैब में पंजीकृत है। इसके अलावा कई विभागीय कर्मचारी अपने परिजनों के नाम से लाइसेंस लेकर वसूली का धंधा चला रहे हैं। उनकी दबंगई के चर्चे इतने मशहूर हैं कि उनकी मर्जी के बिना कोई लाइसेंसी काम नहीं कर सकता क्योंकि वह चाहते हैं कि उनका करीबी रिश्तेदार ही मोटा माल कमाए। इसमें अगर कोई बाधा बनता है तो उसे निपटाने की हैसियत तो वह रखते ही हैं।
लैब के पते में इस तरह करते हैं खेल
घपलेबाज लैब के पते में भी खेल करते हैं, इसकी वजह यह है कि बाट माप विभाग में करीब 90 फीसदी लाइसेंसी ऐसे हैं, जिनके पास लैब है ही नहीं अगर लैब होगी तो उसका रखरखाव समेत तमाम तामझाम का खर्चा उठाना पड़ेगा इसलिए ज्यादातर लैब कागजों में चल रही हैं। इसे ऐसे समझे कामरान के नाम पर उत्तर प्रदेश स्केल्स नाम से फर्म बाट माप विभाग में पंजीकृत है और इसका पता कागजों में दर्शाया गया है नियर बरेली कोर्ट। अब बरेली कोर्ट के चारों ओर घूमते रहिए पर आपको उसकी लैब नहीं मिलेगी।
इसी तरह कामरान की फर्म के नाम पर हां यदि भौतिक सत्यापन की नौबत आएगी तो बरेली कोर्ट के आसपास किसी भी दुकान के बाहर एक बैनर टांग दिया जाएगा और उसे लैब दर्शाकर खानापूरी हो कर दी जाएगी। यही वजह है कि कागजों में लैब का पता अधूरा लिखा जाता है ताकि वह ढूंढे से भी न मिले और जब जरुरत हो तो मिल जाए।
कामरान के नाम पर उत्तर प्रदेश मेजरमेंट वर्क्स नाम से फर्म है, इसका पता लिखा है पीलीभीत बाईपास रोड बरेली। न कोई दुकान नंबर न ही कोई लैंडमार्क अब लैब ढूंढते रहिए क्योंकि पीलीभीत बाईपास शुरू होता है सेटेलाइट से और खत्म होता है बैरियर टू चौकी के पास। इसी तरह एक फर्म भारत बाट माप स्केल नाम से है, इसका पता लिखा है संजयनगर। अब संजयनगर कोई छोटा मोटा तो है नहीं न ही फर्म के नाम से कोई कॉलोनी या चौराहा बना हो जो नाम बताते ही पते पर व्यक्ति पहुंच जाए।
शिकायतों की भरमार पर दबा देते हैं बड़े सरकार
इसरार और कामरान के वसूली के किस्से जगजाहिर हुए तो शिकायतों का दौर भी शुरू हो गया। व्यापारियों को जब पता चला कि ये लोग महज मरम्मतकर्ता हैं और खुद को बाट माप विभाग का अधिकारी बताकर उन्हें धमकाकर वसूली कर रहे हैं तो उन्होंने विभाग के अधिकारियों से शिकायत भी की लेकिन साहब लोगों ने बिरयानी का कर्ज उतारा और कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि शिकायतों को कचरे की टोकरी में डाल दिया। हालांकि जांच कराते तो गर्दन भी खुद की फंसनी थी तो बेहतर जांच दबाना था।
समझें… मरम्मतकर्ता की यह होती है जिम्मेदारी
मरम्मत का लाइसेंस लेने वाले के पास एक लैब होना आवश्यक होता है, जहां वह तराजू बाट की मरम्मत कर सके। इसके लिए मरम्मतकर्ता को अपने पास पर्याप्त मात्रा में तराजू बाट रखने होते हैं। यदि वह किसी दुकानदार के यहां जाता है और उसका तराजू खराब होता है तो वह मरम्मत के लिए उसका तराजू लैब पर लाता है और बदले में अपना तराजू उसे देकर आता है। जब वह व्यापारी के तराजू की मरम्मत कर देता है तो अपना तराजू वापस लेकर व्यापारी का तराजू उसे दे देता है और मरम्मत में आया खर्च व्यापारी से लेता है, जिसकी बाकायदा उसे रसीद देता है। इसके बाद विभाग में तय समय सीमा के भीतर फीस जमा करता है, इसके बाद व्यापारी को एक सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।
समझें… मरम्मतकर्ता यह कर रहे हैं काम
मरम्मत का लाइसेंस लेने वाले ज्यादातर मरम्मतकर्ताओं के पास लैब नहीं है। हालांकि कागजों में उनकी लैब चल रही है। अफसरों की सरपरस्ती में ये मरम्मतकर्ता दुकानों पर जाते हैं और खुद को बाट माप विभाग का अधिकारी बताते हैं। कांटा बाट की जांच के नाम पर व्यापारियों को धमकाते हैं फिर व्यापारी से मनमानी वसूली करते हैं। उसे आधी अधूरी रसीद काटकर तो दे देते हैं मगर रसीद के कई कॉलम खाली छोड़ देते हैं। इसके बाद कार्बन लगाकर मनमाने तरीके से उसे भर देते हैं। अधिकांश व्यापारियों को सर्टिफिकेट भी जारी नहीं किया जाता है।