बरेली। शासन के आदेश जब केवल कागज के टुकड़े साबित हों, तो प्रशासनिक व्यवस्था की तस्वीर खुद-ब-खुद शर्मसार हो जाती है। बरेली के एक बड़े सरकारी कार्यालय में दो बाबू 31 साल से बाबूशाही का खुला तांडव कर रहे हैं। सिस्टम की जगह सिर्फ अय्यारी और जुगाड़ का साम्राज्य चलता है।
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एक बाबू विकास वाले भवन से सीधे बड़े ऑफिस में दाखिल होकर वहीं जम गया, जबकि दूसरा चीनी की मिठास से परहेज कर सीधे बड़े साहब के दरबार में पहुंच गया और पीछे कभी नहीं देखा। अब ये बाबू अफसरशाही के असली शासक बन चुके हैं। सेटिंग, सिफारिश और भ्रष्टाचार के बिना कोई फाइल, जांच या शिकायत आगे नहीं बढ़ती।

दूसरे बड़े अफसर भी पहले इन बाबुओं के पास जाते हैं ताकि बड़े साहब तक रास्ता बन सके। शासन के आदेश आते रहते हैं, लेकिन बाबुओं के साम्राज्य के सामने ये सिर्फ रद्दी कागज साबित होते हैं।
बाबूशाही के मिजाज पर निर्भर प्रशासनिक व्यवस्था
जहां बाबू का मूड अच्छा हो, वहां फाइलें मंजूर होती हैं। नाराज़गी तो पूरे कार्यालय का अंधेरा बन जाती है। अफसर बड़े साहब से पहले इन बाबुओं को प्रसन्न करने में लगे रहते हैं। फाइल की एक झलक या इशारा ही मामला सुलझा देता है। बड़े अधिकारी केवल अंतिम स्टांप भरने वाले बनकर रह गए हैं।
बाबूशाही के सामने शासनादेश की बेअसरता
‘सम्बद्धता समाप्त करने’ के आदेश भी इन बाबुओं के साम्राज्य के सामने असरहीन हैं। यह गंदी तस्वीर विकृत स्वरूप को उजागर करती है। सवाल उठता है, क्या प्रशासनिक सुधार केवल कागज पर ही सीमित रहेंगे?