Bareilly News: सिविल लाइंस इलाके में हेड पोस्ट ऑफिस के पास स्थित जेबी मोटर्स ( JB Motors ) एक बार फिर सुर्खियों में है। कारण वही पुराना—प्रदूषण प्रमाण पत्र के नाम पर मोटरसाइकिल और कार मालिकों से जेब ढीली करवाना। शासन को जब लोकतंत्र टुडे की खबर से यह हकीकत दोबारा पता चली तो परिवहन विभाग हरकत में आया और अब जेबी मोटर्स (JB Motors ) पर एक बार फिर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू कर दी गई है।

नियम के मुताबिक दोपहिया वाहनों के प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र का शुल्क महज 65 रुपये तय है। लेकिन जेबी मोटर्स (JB Motors ) ने इस दर को धता बताते हुए 120 रुपये तक वसूले। छोटी-सी रकम समझकर कई वाहन मालिकों ने आवाज़ नहीं उठाई, लेकिन जब यह खेल बड़े पैमाने पर हुआ तो मामला अखबारों की सुर्खियों में आ गया। लोकतंत्र टुडे ने 11 मार्च के अंक में इस घोटाले का खुलासा किया था।
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JB Motors का लाइसेंस पहली बार हुआ था निलंबन
खबर छपते ही तत्कालीन डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर संजय सिंह हरकत में आए और जांच रिपोर्ट शासन को भेजी। शासन ने भी तुरंत सख्ती दिखाते हुए जेबी मोटर्स (JB Motors ) का लाइसेंस दो महीने के लिए निलंबित कर दिया। इस दौरान दोपहिया और पेट्रोल वाहनों की जांच ठप रही। वाहन मालिकों को थोड़ी राहत मिली कि अब जेब काटने का खेल रुका है।
डीजल वाहनों में भी गड़बड़ी
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। इसी बीच जेबी मोटर्स (JB Motors) पर डीजल गाड़ियों के प्रदूषण जांच में भी अवैध वसूली की शिकायतें सामने आईं। ट्रकों और बसों से मोटी रकम ऐंठने का आरोप लगा। जांच शुरू भी हुई, मगर तभी डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर संजय सिंह का तबादला हो गया और मामला फाइलों में दबकर रह गया।
दोबारा बहाल हुआ लाइसेंस
दो महीने का निलंबन खत्म होने के बाद जेबी मोटर्स का पेट्रोल गाड़ियों का लाइसेंस फिर से बहाल कर दिया गया। मगर डीजल वाहनों का लाइसेंस अधर में लटका रहा। जानकारों का कहना है कि कंपनी मालिक की ऊँची पहुँच और कुछ अधिकारियों से करीबी रिश्तों के चलते डीजल वाले मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
लोकतंत्र टुडे’ ने फिर उठाई आवाज़
लेकिन जैसे ही लोकतंत्र टुडे ने इस मामले को दोबारा प्रमुखता से उठाया, शासन ने तुरंत संज्ञान लिया। नतीजा यह हुआ कि परिवहन विभाग को नए सिरे से जांच बैठानी पड़ी। डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ने आरटीओ को आदेश दिए कि मामले की जांच पीटीओ से कराई जाए और जल्द से जल्द रिपोर्ट शासन को भेजी जाए।
वाहन मालिकों की नाराज़गी
वाहन मालिक इस पूरे खेल से खासे नाराज़ हैं। उनका कहना है कि प्रदूषण जांच एक ज़रूरी प्रक्रिया है, मगर इसमें भी जबरन वसूली होगी तो आम आदमी कहाँ जाएगा? 65 की जगह 120 रुपये वसूलना छोटी चोरी नहीं है, बल्कि खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाना है। एक वाहन मालिक ने तंज कसते हुए कहा—“नाम है प्रदूषण जांच, पर असली मकसद है जेब जांच।” इस पूरे मामले में अधिकारियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। आखिरकार दो-दो बार शिकायत आने और प्रमाणिक सबूत सामने होने के बावजूद जेबी मोटर्स कैसे बचती रही? क्यों डीजल वाहनों के मामले की जांच अधूरी छोड़ दी गई? यह सब सवाल शासन की साख पर भी चोट करते हैं।
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अबकी बार होगी सख्ती?
अब जब शासन ने दूसरी बार जांच बैठाई है तो देखना यह होगा कि कार्रवाई कितनी दूर तक पहुँचती है। क्या सिर्फ रिपोर्ट बनाकर फाइल बंद कर दी जाएगी या फिर वाकई दोषियों पर गाज गिरेगी? फिलहाल परिवहन विभाग का दावा है कि जांच पूरी पारदर्शिता से कराई जाएगी और रिपोर्ट के आधार पर सख्त कदम उठाए जाएंगे।