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पावर कॉर्पोरेशन के नोटिस असली या फर्जी, चलती है बड़े साहब की मर्जी 

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Sanjeev Sharma

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पावर कॉर्पोरेशन के नोटिस असली या फर्जी, चलती है बड़े साहब की मर्जी 

बरेली। पावर कॉर्पोरेशन के अधिकारी और कर्मचारियों ने बिजली चोरी को भी कमाई का बड़ा जरिया बना लिया है। बिजली चोरी के मामलों में पहले लाखों रूपये के बिना साइन के नोटिस भेजे जाते हैं और बाद में सेटिग कर उन्हें हजारों में निपटा दिया जाता है। अधिशासी अभियन्ता नगरीय विद्युत वितरण खण्ड सेकेण्ड सतेंद्र चौहान के कार्यालय से प्रोविजनल बिल बगैर दिनांक, पत्रांक और हस्ताक्षर ऐसे कई नोटिस जारी किये गये हैं, लेकिन उन्हें विभागीय लिखा पढ़ी में नहीं भेजा गया है। जिन मामलों में सेटिंग हो गई उनके प्रोविजनल बिल पहले हजारों में बनाये फिर सेटिंग कर उसकी आधी अधूरी रकम विभाग के खाते में जमा कराकर जिम्मेदार लोगों ने खुद वारे न्यारे कर लिए।  

 पावर कॉरपोरेशन मुख्यालय का आदेश है कि बिजली चोरी के मामले में तीन दिन के अन्दर बिजली चोरी करने वाले उपभोक्ता को विभाग पहले प्रोविजनल बिल देगा। प्रोविजनल बिल के पंद्रह दिन के अंदर उपभोक्ता प्रोविजनल बिल से अगर असहमत है तो अपना प्रत्यावेदन दे सकता है अगर उपभोक्ता 30 दिन के अन्दर अपना प्रत्यावेदन नहीं देता है तो प्रोविजनल बिल को ही फाइनल बिल माना जायेगा। अधिशासी अभियंता नगरीय सेकेंड सतेंद्र चौहान के एरिया परसाखेड़ा में 12 फरवरी को बिजली चेकिंग में बिजली चोरी पकड़े जाने के बाद पहले कार्यालय से प्रोविजनल बिल बगैर दिनांक, पत्रांक और हस्ताक्षर के कई नोटिस जारी किये गये हैं। लेकिन उन्हें विभागीय लिखा पढ़ी में उपभोक्ताओं को नहीं भेजा गया है। 12 फरवरी के प्रोविजनल बिल तीन कार्य दिवस में भेजे जाने थे, लेकिन विभागीय अधिकारीयों ने 23 फरवरी को लिखा पढ़ी में प्रोविजनल बिल जारी किये। अधिशासी अभियन्ता एक सप्ताह से अधिक समय तक यूपीपीसीएल मुख्यालय के आदेश को हवा में उड़ाते रहे या फिर बगैर हस्ताक्षर नोटिस भेज उपभोक्ताओं से सेटिंग में लगे रहे।

प्रोविजनल विल बढ़ाया, खाते में कम जमा कराया

बिजली चोरी का मामला हो या फिर बिल कम कराने का, दलालों और निगम के कर्मचारियों की साझेदारी उपभोक्ताओं पर भारी पड़ रही है। बताया जाता है कि जितनी रकम होती है उसी अनुपात में सौदा तय किया जाता है। इसके लिए नियम और कानून का गला घोट दिया जाता है।  

केस वन

12 फरवरी को बिजली चोरी के मामले में महबूब हुसैन निवासी मथुरापुर परसाखेड़ा के नाम अधिशासी अभियन्ता के बगैर हस्ताक्षर एक प्रोविजनल बिल का नोटिस जारी किया गया। जिसमें 183776 रुपए जुर्माना लगा है, इसका विभाग में कोई रिकार्ड नहीं है। जबकि लिखापढ़ी में जो नोटिस 23 फरवरी को अधिशासी अभियंता सेकेंड सतेंद्र चौहान के हस्ताक्षर से जारी हुआ है उसमें 76390 रुपए दर्शाए गए हैं, वही उसके सापेक्ष निगम के खाते में 55798 रूपये जमा कराए गये हैं।

केस दो

सद्दीक अहमद को बिना अधिशासी अभियन्ता के हस्ताक्षर भेजे गए प्रोविजनल बिल में 167679 रुपए दर्शाए हैं और 23 फरवरी को भेजे गए हस्ताक्षर वाले प्रोविजनल बिल में 72915 रुपए दर्शाये गए हैं। जबकि निगम के खाते में कुल 42486 रूपये जमा किये गए हैं।

केस तीन

मथुरापुर निवासी बाबू को बिना हस्ताक्षर भेजे गए प्रोविजनल बिल में 168958 रुपए दर्शाए है, और 23 फरवरी को भेजे गए हस्ताक्षर वाले प्रोविजनल बिल में 73270 रुपए दर्शाए हैं। जबकि निगम के खाते में कुल 38330 रूपये जमा कराए हैं।

केस चार

मथुरापुर परसाखेड़ा निवासी वसीम अहमद को बिना हस्ताक्षर से भेजे गए प्रोविजनल बिल में 230772 रुपए दर्शाए गए हैं, जबकि उसके सापेक्ष कुल 59666 रूपये जमा कराए हैं।

जानिये क्या वोले अधिशासी अभियन्ता

बिना हस्ताक्षर के प्रोविजनल बिल भेजे जाने के बारे जब अधिशासी अभियंता सेकेंड सतेंद्र चौहान से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बाबू से मामले की जानकारी करेंगे कि बिना हस्ताक्षर के चिट्ठियां कैसे जारी हुई हैं। लेकिन उन्होंने इस मामले में न तो कोई जांच कमेटी बनाई और न ही अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस तरह के मामले की जानकारी दी है। जिससे उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।

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Author: Sanjeev Sharma

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