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नए चेहरों के समक्ष गढ़ और पुराने के सामने वर्चस्व बचाने की चुनौती? 

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Sanjeev Sharma

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नए चेहरों के समक्ष गढ़ और पुराने के सामने वर्चस्व बचाने की चुनौती?

बरेली। भाजपा का गढ़ माने जाने वाले बरेली मंडल और उसके आसपास की सात लोकसभा सीटों पर इस बार बदले हुए समीकरणों में पार्टी के नए सिपहसालारों के सामने अपने किले को बचाने की अग्निपरीक्षा में अच्छे नंबरों से पास होकर आलाकमान के भरोसे पर खरा उतरने और पुरानों के सामने अपना रुतबा कायम रखने की बहुत बड़ी चुनौती है।

भाजपा नेतृत्व ने लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर, धौरहरा और आंवला लोकसभा सीटों पर पुराने आजमाए-परखे चेहरों पर ही दांव लगाया है। खीरी से दो बार चुनावी किला भेद चुके मौजूदा सांसद-केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी, धौरहरा से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा वर्मा और आंवला से हैट्रिक की कवायद में जुटे धर्मेंद्र कश्यप के समक्ष सारी आशंकाओं को झूठा साबित करते हुए जीत की हैट्रिक लगानी ही पड़ेगी।

अपने सबसे ज्यादा चौंकाने वाले फैसले में भाजपा आलाकमान ने बरेली से आठ बार के सांसद और डेढ़ दशक तक केंद्र में मंत्री रहे संतोष गंगवार की जगह बहेड़ी से दो बार विधायक रहे प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री छत्रपाल सिंह गंगवार को प्रत्याशी बनाया है। आलाकमान ने छत्रपाल को टिकट देकर बरेली लोकसभा सीट के परंपरागत जातीय समीकरणों को साधते हुए पार्टी के पक्ष में ही बरकरार रखने की कोशिश भी की है।
इसी तरह बदायूं में मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य की जगह भाजपा संगठन में ब्रज क्षेत्र अध्यक्ष और जमीन से जुड़े, जुझारू नेता की छबि रखने वाले दुर्विजय सिंह शाक्य पर भरोसा जताया है। जाहिर है कि दुर्विजय के तीर से बदायूं में किंगमेकर की हैसियत रखने वाले सैनी, मौर्य, शाक्य वोट बैंक को पोलिंग डेट पर भाजपा के वोट बैंक में तब्दील करने का लक्ष्य साधने की पूरी कोशिश रहेगी। इसी जिताऊ समीकरण को ध्यान में रखकर ही चाचा शिवपाल सिंह यादव के एमवाई समीकरण को धूल चटाने के इरादे से ही बदायूं में मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य की जगह भाजपा संगठन में ब्रज क्षेत्र अध्यक्ष और जमीन से जुड़े, जुझारू नेता की छबि रखने वाले दुर्विजय सिंह शाक्य पर भरोसा जताया है। 
यहां बता दें कि सपा-कांग्रेस गठबंधन ने इस चुनाव में मुस्लिम चेहरों से किनारा किया है। उसके पीछे मुस्लिम मतों को एकजुट रखने के साथ ही हिंदू मतों में सेंधमारी की भी रणनीति है। ऐसे में भाजपा प्रत्याशियों को हिन्दू मतों को पूरी तरह साधे रखने की बड़ी चुनौती से जूझना और पार भी पाना  होगा। तभी यूपी में 80 के आसपास कमल खिलाए जा सकेंगे।

नेतृत्व की निगाह टिकट कटने वालों के रुख पर

आठ बार बरेली से भाजपा की जीत का परचम फहरा चुके मौजूदा सांसद संतोष गंगवार ने टिकट कटने के बाद भी फिलहाल पार्टी लाइन पर रहते हुए ही अपना रुख स्पष्ट किया है। उधर, बदायूं सांसद संघमित्रा मौर्य ने भी अपनी जगह प्रत्याशी बने दुर्विजय सिंह शाक्य को न सिर्फ सोशल मीडिया पर बधाई दी बल्कि नामांकन जुलूस में भी शामिल रहीं। यानि उन्होंने भी पार्टी नेतृत्व के फैसले पर अभी तक सहमति ही जताई है। अपनी नाराजगी जाहिर नहीं होने दी। पीलीभीत में भी दो बार के सांसद रहे वरुण गांधी ने चुप्पी साधकर पार्टी की सहानुभूति हासिल की है। हालांकि अगले कुछ दिनों में जब चुनाव प्रचार शबाब पर होगा तो टिकट कटने वालों इन नेताओं के रुख और इनकी गतिविधियों पर भी पार्टी नेतृत्व की नज़र जरूर रहेगी। 

बसपा का प्रदर्शन तय करेगा किस करवट बैठेगा चुनावी नतीजों का ऊंट

मुस्लिम मतों को साधने के लिए बसपा ने बदायूं, पीलीभीत सहित कई सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। सपा भी मुस्लिम मतों पर भरोसा कर रही है और हिन्दू मतों में सेंधमारी करने की कोशिश में है। ऐसे में चुनावी नतीजों का ऊंट अंतत: किस करवट बैठेगा, यह बसपा प्रत्याशियों के प्रदर्शन पर भी  काफी हद तक निर्भर करेगा। 

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Author: Sanjeev Sharma

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