बरेली। ऑफिस में काम कम और दाम अधिक मिलता है। यही वजह है कि पूर्वोत्तर रेलवे मंडल इज्जतनगर के मंडल मुख्यालय में गैंगमैंन अपनी तैनाती कराते हैं। कुछ गैंगमैंन लंबे समय से यहां टिके हुए हैं, उनका पटरी से मोह भंग हो चुका है। आजकल वह ऑफिस की फाईलों में नोट गिन रहे हैं।
टेंडर सेक्शन में चर्चित गैंगमैंन संतोष और गैंग के मेठ भरतलाल मीना के पटरी की जगह दफ्तर की फाइलों में कमाई के मामले अब खुलाने लगे हैं। विभागीय जानकारों की मानें तो टेंडर सेक्शन के ओएस दिनेश चंद्र यादव जब से डीआरएम दफ्तर में आये हैं उनके पास कई मलाईदार पटल रहे हैं, हाल ही में वह टेंडर ओएस बने हैं। दिनेश चंद्र यादव पर आईआरपीएसएम का चार्ज है। (जिसके माध्यम से कार्य स्वीकृत होता है) यह तकनीकी काम होने की बजह से रेल अधिकारी उनको एक दो मलाईदार सीट देते हैं। हाल ही उनको टेंडर सेक्शन का अधीक्षक बनाया गया है। इसके बाद भी उन्हें प्लान हेड 53 दिया गया जिससे रेल की आईआरपीएसएम की व्यवस्था न बिगड़े। ओएस टेंडर दिनेश चंद्र यादव को प्लान हेड 53 के बिल का चार्ज भी दिया गया है। विभागीय जानकार बताते हैं कि प्लान हेड 53 में करीब दो सौ करोड़ रुपये का बजट है। इस प्लान में एफओबी और स्टेशन पर कार्य से सम्बंधित काम कराए जाते हैं। जानकार बताते हैं कि टेंडर सेक्शन के ओएस को पहले कभी बिल या दूसरा कोई काम कभी नही दिया गया।
बाबुओं की चांदी के बाद विभाग में मलाईदार सीटों पर काबिज गैंगमैनों की बात करें तो उसमें सबसे पहला नाम संतोष का है। संतोष पर दिनेश यादव के अधीन टेंडर अपलोड करने और खोलने का काम है। लेकिन उसने इस काम की जगह ठेकेदारों के टेंडर ऑफिस के ही कम्प्यूटर से डालना और श्रमिक पोर्टल पर लेवर का पंजीकरण और उसको एप्रूव्ड करने का काम शुरू कर दिया है। बताया जाता है कि वह ठेकेदारों से टेंडर भरने, लेवर भरने के नाम पर मोटी कमाई कर रहा है।
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इसके बाद कमाई के मामले में इंजीनियरिंग अनुभाग में सबसे चर्चित नाम है गैंगमैन दिनेश का। दिनेश करीब 8 साल से डीआरएम आफिस में जमे हैं। दिनेश की पहले लालकुआं में तैनाती थी। वह इंजीनियरिंग के एक बड़े अधिकारी की कृपा पर अपना ट्रांसफर कराकर इज्जतनगर के सीबीजे गैंग में आ गया। दिनेश ने शायद ही लालकुआं से आकर रेल की पटरी देखी हो क्योंकि यहां उसे फाइलों में नोट दिखते हैं। बताया जाता है कि दिनेश नेहा जौहरी नाम की बाबू के सहायक के रूप में काम करता है।
दिनेश के बारे में बताया जाता है कि वह रेलवे के कम्प्यूटर से दफ्तर में ही ठेकेदारों के डिजिटल सिग्नेचर के माध्यम से उनके बिल एक्सेप्ट और फॉरवर्ड भी करता है। नेहा जौहरी के पटल पर आने वाले बिलों के अधिकांश ठेकेदारों की लेवर को भी वह श्रमिक पोर्टल पर अपलोड करने के साथ एप्रूव्ड भी करता है। दिनेश सिंह का खेल संतोष से भी एक कदम आगे है। वह दफ्तर में बैठकर ठेकेदारी भी करता है। विभागीय कर्मचारी होने की वजह से वह ठेकेदारों को मिलने वाली पीवीसी के बिलो को भी खुद बनाता है, जिसे ठेकेदारों को खुद बनवाना चाहिए। बताया जाता है कि वह एक पीवीसी बिल बनाने के एवज में दस से पंद्रह हजार रुपये वसूलता है। इसके अलावा वे लीव पोर्टल पर केबिल डालने वाले ठेकेदारों की मदद के नाम पर जमकर बसूली करता है। बताया जाता है कि इंजीनियरिंग विभाग में जमे गैंगमैंन संतोष और दिनेश बहुत ही कम समय मे करोड़पति हो गए हैं।
एक गैंगमैंन के बारे में यहां तक कहा जाता है कि वह अफसरो का चहेता होने की बजह से अपने पीडब्ल्यूआई और आईओडब्ल्यू को भी हड़का देता है। इसके पीछे वजह बताई जा रही है कि वह अधिकारियों से उनकी झूठी शिकायत कर देता है। विभाग से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया यदि रेलवे के अधिकारी या विजिलेंस इनके कम्प्यूटरों की जांच करा लें तो कई बड़ा मामले पकड़ में आएंगे इसमें कई बड़े अधिकारी और कर्मचारी बेनकाब हो सकते हैं।